"विश्वास और जीवन "
ना ही किसी को हम समझा सकते हैं और ना ही प्रयास करना चाहिए ..... हम किसी को बता ज़रूर सकते हैं , लेकिन उसे कठपुतली मान के उसे अपने इशारों पर नहीं चला सकते , ये तो दूसरे के विवेक पर और उसके विश्वास पर निर्भर करता है ।
हम ख़ुद को ज़रूर समझा सकते हैं क्यूँकि हम ख़ुद पर विश्वास रखते हैं।
अपनी विश्वसनीयता को बनाना हमारे कार्यों और विचारों पर निर्भर करता है । कर्म ऐसा हो की सब को हम पे विश्वास हो जाए , विश्वास ऐसा हो की सब अपने हो जायें।
वस्तुओं को ख़रीदा जा सकता है , लेकिन विश्वास नहीं ।
Nature हमें जीवन देती है , हम उस पर विश्वास करते हैं , हम भी अगर प्यार और विश्वास दे के सब को अपना बना सकते हैं .
"ख़ुश रहिए , ख़ुश रखिए "
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