हम सब अपनी जिंदगी काश....और... कैश...
के बीच गुज़ार देते हैं .....लेकिन जब तक मन में कोई भी पीड़ा है , हम कुछ भी अच्छा महसूस नहीं कर सकते ।
अपनी मन की पीड़ा का कारण है अज्ञान ऐवम पाप और पाप का बोध होना ।
चाहे हम संसार को जाने या ना जाने , लेकिन हमें ख़ुद को जान लेना आवश्यक है .....हमें अगर इस बात का बोध हो जाए की हमारा कार्य सही या ग़लत है , जो सिर्फ़ अंजाम से ही हमें ज्ञात हो सकता है , हम अपने मन की पीड़ा को कम कर सुख बोध की तरफ़ आगे बड़ सकते हैं ।
हर कार्य कर्म होता है , लेकिन हर कर्म कार्य के अंजाम पर निर्भर करता है । अगर हमारा कार्य किसी को दुःख देता है , यह एक ग़लत कर्म का जनक होता है और हमारे दुःख का कारण होता है ।
ज़िंदगी का एक ही मंत्र - "ख़ुश रहिए , ख़ुश रहिए "
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