जब तक तकलीफ़ आपकी नही...तब तक आपको भी कोई तकलीफ़ नही...!
"जाके पैर ना फ़टे बिवाई...
सो क्या जाने पीर पराई...!"...
प्रश्न ये नही है कि ज़िन्दगी ने हमें क्या सिखाया, प्रश्न ये है कि हमने ज़िन्दगी से क्या सीखा...?
क्या कोई सिर्फ़ आपके शब्दों को पढ़कर आपसे दोस्ती कर सकता है...?
शायद नहीं , हाँ ... लेकिन आपकी रचनाएँ आदर का पात्र ज़रूर बन सकती हैं..
बदलाव एक दिन में कब आता है...?
..जब आप सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने बारे में सोचना छोड़ सकते हैं ... तभी सिर्फ़ बदलाव आ सकता है ..
ज़िन्दगी अपने रंग बदले ना बदले...पर इंसान बदल लेते हैं...!
लेकिन फिर भी ,कोई ऐसा भी कहीं होगा...जिसकी ख़ुशी आपसे होगी...सिर्फ आपसे...!
ख्यालों को ख्यालों में पिरो देना...बस यही है लिख देना...!
"ईशारों में बातें...कि बातों में ईशारे...!"
...मैं झूठा ..तुम झूठे...फिर यकीन किस पर करें...?...
कहीं तो भरोसा रखना होगा , कभी तो संतुष्ट होना पड़ेगा ..
बस एक विश्वास ही काफ़ी है पत्थर को भगवान समझने के लिए या इंसान को पथर समझने के लिए ..
...खूबसूरती आईने में कहाँ...तेरी नज़रों में है...! ... बस एक भरोसे और विश्वास की नज़र चाहिए ...
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